Tuesday 11 April 2017

" शेर-ए-ख़ुदा हज़रत अली रज़िअल्लाहु तआला अन्हु "

इस्लाम में इस बात पे हमेशा से जोर दिया गया है कि महापुरुषों ,पैगम्बरों, नबियों और इमाम को हमेशा किसी न किसी अवसर में याद किया करो जिससे उनके किरदार को आज का नौजवान समझे और खुद को संवार के एक बेहतरीन इंसान बना सके | इसी लिए अक्सर मुसलाम माहापुरुशों के जन्म दिवस पे ख़ुशी और म्रत्यु में दुःख प्रकट कर के उनको याद करता है | 


यह रमजान का मुबारक महीना है जिसमे हर इंसान यही कोशिश करता है की गुनाहों से बचे और साल भर में यदि कोई बुरी आदत पद गयी हो तो उस बुराई को इस महीने में खुद से दूर कर सके | लेकिन इसी महीने की १९ तारिख को मुसलमानों के खलीफा हजरत अली (अ.स) को अब्दुर्रहमान पुत्र मुलजिम नाम के व्यक्ति ने उनपे तलवार से हमला उस समय किया जब वो अल्लाह के आगे सजदे में थे |गया तथा दो दिन पश्चात रमज़ान मास की 21 वी रात्री मे नमाज़े सुबह से पूर्व आपने इस संसार को त्याग दिया। 


हजरत अली (अ.स) का किरदार इतना बलंद था की जब उन्होंने तीन दिन बिस्तर पे रह के दुनिया छोड़ दी और उनको दफन के लिए ले जाया जा रहा था तो गरीबों के मोहल्ले से किसी ने पुछा यह कौन था और जब लोगों ने बताया की यह हजरत अली(अ.स) थे और तीन दिन बीमार रह के दुनिया से चले गए तो वो सारे गरीब रूने लगे की हाय अब उनका क्या होगा यही तो था जो रोज़ उनके घरों में अनाज रात के अँधेरे में पहुँचाया करता था | 

यह वही अली (अ.स) थे जो कहा करते थे कि मेरी रचना केवल इसलिए नहीं की गई है कि चौपायों की भांति अच्छी खाद्य सामग्री मुझे अपने में व्यस्त कर ले या सांसारिक चमक-दमक की ओर मैं आकर्षित हो जाऊं और उसके जाल में फंस जाऊं। मानव जीवन का मूल्य अमर स्वर्ग के अतिरिक्त नहीं है अतः उसे सस्ते दामों पर न बेचें। हज़रत अली का यह कथन इतिहास के पन्ने पर एक स्वर्णिम समृति के रूप में जगमगा रहा है कि ज्ञानी वह है जो अपने मूल्य को समझे और मनुष्य की अज्ञानता के लिए इतना ही पर्याप्त है कि वह स्वयं अपने ही मूल्य को न पहचाने। 



हजरत अली (अ.स) ने अपनी खिलाफत के समय अद्धितीय जनतांत्रिक सरकार की स्थापना की। उनके शासन का आधार न्याय था। समाज में असत्य पर आधारित या किसी अनुचति कार्य को वे कभी भी सहन नहीं करते थे। उनके समाज में जनता की भूमिका ही मुख्य होती थी और वे कभी भी धनवानों और शक्तिशालियों पर जनहित को प्राथमिक्ता नहीं देते थे। जिस समय उनके भाई अक़ील ने जनक्रोष से अपने भाग से कुछ अधिक धन लेना चाहा तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उन्हें रोक दिया। उन्होंने पास रखे दीपक की लौ अपने भाई के हाथों के निकट लाकर उन्हें नरक की आग के प्रति सचेत किया। वे न्याय बरतने को इतना आवश्यक मानते थे कि अपने शासन के एक कर्मचारी से उन्होंने कहा था कि लोगों के बीच बैठो तो यहां तक कि लोगों पर दृष्टि डालने और संकेत करने और सलाम करने में भी समान व्यवहार करो। यह न हो कि शक्तिशाली लोगों के मन में अत्याचार का रूझान उत्पन्न होने लगे और निर्बल लोग उनके मुक़ाबिले में न्याय प्राप्ति की ओर से निराश हो जाएं। 

यह वही अली (अ.स० थे जिनकी पत्नी हजरत मुहम्मद (स.अव) की बेटी थी और बेटे इमाम हसन और हुसैन (अ.स) थे |यह वही अली थे जिनकी इस्लाम के लिए दी गयी कुर्बानियों के कारण यजीद जैसे ज़ालिम ने उनके बेटे इमाम हुसैन (अ.स) को शहीद कर दिया | हजरत अली (अ.स) के कथन आज भी लोगों को सीख देते हैं और गुमराही से बचाते हैं | 

  • हजरत अली (अ.स) का कथन है कि वतन से मोहब्बत ईमान की निशानी है : हज़रत अली(अ.स.) और सभी इंसान या तो तुम्हारे धर्म भाई हैं या फिर इंसानियत के रिश्ते से भाई हैं |
  • हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने मित्रों से प्रेम करो क्योंकि अगर तुम उनके साथ प्रेम नही करोगे तो वह एक दिन तुम्हारे शत्रु बन सकते हैं। तथा अपने शत्रुओं से भी प्रेम करो क्योकि वह इस प्रकार एक दिन आपके मित्र बन सकते है।
  • हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने अलैहिस्सलाम ने कहा कि हर व्यक्ति का मूल्य उसके द्वारा किये गये पुण्यों के बराबर है।
  • हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि इबादत से कोई लाभ नही है अगर इबादत तफ़क़्क़ो (धर्म निर्देशों को समझने का ज्ञान) के साथ न की जाये। ज्ञान से कोई लाभ नही अगर उसके साथ चिंतन न हो। कुऑन पढ़ने से कोई लाभ नही अगर अल्लाह के आदेशों को समझने का प्रयत्न न किया जाये।
  • हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं आप लोगों के विषय मे दो बातों से डरता हूँ
1- इच्छाओं की अधिकता जिसके कारण व्यक्ति परलोक को भूल जाता है। 
2- इद्रियों का अनुसरण जो व्यक्ति को वास्तविक्ता से दूर कर देता है। 
  • हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि मर जाओ परन्तु अपमानित न हो, डरो नहीं बेझिजक रहो क्योंकि यह जीवन दो दिन का है। एक दिन तेरे लिए लाभ का है तथा एक दिन हानि का लाभ से प्रसन्न व हानि से दुखित न हो क्योकि इन्ही दोनो के द्वारा तुझे परखा जायेगा।
  • हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अमानत (धरोहर) रखी हुई वस्तुओं को वापस लौटाओ। चाहे वह पैगम्बरों की सन्तान के हत्यारों की ही क्यों न हों। हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह छः समुदायों को उनके छः अवगुणो के कारण दण्डित करेगा। 
    1-अरबों को तास्सुब( अनुचित पक्ष पात ) के कारण 
    2-ग्रामों के मुख्याओं को उनके अहंकार के कारण 
    3- शसकों को उनके अत्याचार के कारण 
    4- धर्म विद्वानों को उनके हसद (ईर्ष्या) के कारण 
    5- व्यापारियों को उनके विश्वासघात के कारण 
    6- ग्रामवासियों को उनकी अज्ञानता के कारण 
  • हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि जब यह दुनिया किसी को चाहती है तो दूसरों की अच्छाईयां भी उससे सम्बन्धित कर देती है। तथा जब किसी से शत्रुता करती है तो उसकी अच्छाईयां भी उससे छीन लेती हैं।
  • हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि याद रखो कि पापों का आनंद शीघ्र समाप्त हो जाता है। तथा पापों का अप्रियः अन्त सदैव बाक़ी रहता है
1- स्वर्ग की सम्पत्ति
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने पुण्यों को छुपाना विपत्तियो पर सब्र (संतोष) करना व विपत्तियों का गिला न करना यह स्वर्ग की सम्पत्ति है।
2- पारसा (विरक्त) व्यक्ति की विशेषताऐं
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि पारसा व्यक्ति वह है जो हलाल कार्यों मे उलझ कर अल्लाह के धन्यवाद को न भूले तथा हराम कार्यो के सम्मुख अपने धैर्य को बनाए रखे।
3- प्रेम
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने मित्रों से प्रेम करो क्योंकि अगर तुम उनके साथ प्रेम नही करोगे तो वह एक दिन तुम्हारे शत्रु बन सकते हैं। तथा अपने शत्रुओं से भी प्रेम करो क्योकि वह इस प्रकार एक दिन आपके मित्र बन सकते है।
4- व्यक्ति का मूल्य
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने अलैहिस्सलाम ने कहा कि हर व्यक्ति का मूल्य उसके द्वारा किये गये पुण्यों के बराबर है।
5- इबादत ज्ञान व कुऑन
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि इबादत से कोई लाभ नही है अगर इबादत तफ़क़्क़ो (धर्म निर्देशों को समझने का ज्ञान) के साथ न की जाये। ज्ञान से कोई लाभ नही अगर उसके साथ चिंतन न हो। कुऑन पढ़ने से कोई लाभ नही अगर अल्लाह के आदेशों को समझने का प्रयत्न न किया जाये।
6- इच्छाओं की अधिकता
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं आप लोगों के विषय मे दो बातों से डरता हूँ
1- इच्छाओं की अधिकता जिसके कारण व्यक्ति परलोक को भूल जाता है।
2- इद्रियों का अनुसरण जो व्यक्ति को वास्तविक्ता से दूर कर देता है।
7- मित्रता
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने मित्र के शत्रु से मित्रता न करो क्योंकि इससे आपका मित्र आपका शत्रु हो जायेगा।
8- सब्र के प्रकार
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि सब्र तीन प्रकार का है।
1-विपत्ति पर सब्र करना।
2-अज्ञा पालन पर सब्र करना।
3-पाप न करने पर सब्र करना।
9- दरिद्रता
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने ने कहा कि जो व्यक्ति दरिद्रता मे लिप्त हो जाये और यह न समझे कि यह अल्लाह की ओर से उस के लिए एक अनुकम्पा है तो उसने एक इच्छा को समाप्त कर दिया। और जो धनी होने पर यह न समझे कि यह धन अल्लाह की ओर से ग़ाफ़िल (अचेतन) करने के लिए है तो वह भयंकर स्थान पर संतुष्ट हो गया।
10- प्रसन्नता व दुखः
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि मर जाओ परन्तु अपमानित न हो, डरो नहीं बेझिजक रहो क्योंकि यह जीवन दो दिन का है। एक दिन तेरे लिए लाभ का है तथा एक दिन हानि का लाभ से प्रसन्न व हानि से दुखित न हो क्योकि इन्ही दोनो के द्वारा तुझे परखा जायेगा।
11- मशवरा (परामर्श)
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने ने कहा कि जो व्यक्ति भलाई चाहता है वह कभी परेशान नही होता । तथा जो अपने कार्यों मे मशवरा करता है वह कभी लज्जित नही होता।
12- देश प्रेम
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि शहरों की आबादी देश प्रेम पर निर्भर है।
13- ज्ञान
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि ज्ञान के तीन क्षेत्र हैं
1- धार्मिक आदेशों का ज्ञान
2- शरीर के लिए चिकित्सा ज्ञान
3- बोलने के लिए व्याकरण का ज्ञान
14- विद्वत्ता पूर्ण कथन
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि विद्वत्ता पूर्ण बात करने से मान बढ़ता है।
15- दरिद्रता व दीर्घायु
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने आपको दरिद्रता व दीर्घायु का उपदेश न दो।
16- मोमिन
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि मोमिन (आस्तिक) को अपशब्द कहना इस्लामी आदाशों की अवहेलना है। मोमिन से जंग करना कुफ़्र है। व उसके माल की रक्षा उसके जीवन की रक्षा के समान है।
17- पढ़ना व चुप रहना
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि पढ़ो ताकि ज्ञानी बनो। चुप रहो ताकि हर प्रकार की हानि से बचो।

18- दो भयानक बातें
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि दरिद्रता के भय व अभिमान ने मनुष्य को हलाक (मार डालना) कर दिया है।।
19- अत्याचारी
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अत्याचार करने वाला, अत्याचार मे साहयता करने वाला तथा अत्याचार से प्रसन्न होने वाला तीनों अत्याचारी हैं।
20- सरहानीय सब्र (धैर्य)
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि विपत्तियों पर सब्र करना सराहनीय हैं परन्तु अल्लाह द्वारा हराम (निषिद्ध) की गयी वस्तुओं से दूर रहने पर सब्र करना यह अति सराहनीय है।
21- धरोहर वस्तुओं का लौटाना
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अमानत (धरोहर) रखी हुई वस्तुओं को वापस लौटाओ। चाहे वह पैगम्बरों की सन्तान के हत्यारों की ही क्यों न हों।
22- प्रसिद्धि
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने आपको प्रसिद्ध न करो ताकि आराम से रहो । अपने कार्यों को छुपाओ ताकि पहचाने न जाओ। अल्लाह ने तुझे दीन समझा दिया है अतः तेरे लिए कोई कठिनाई नही है न तू लोगों को पहचान न लोग तुझे पहचाने।
23- छः समुदायों का दण्ड
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह छः समुदायों को उनके छः अवगुणो के कारण दण्डित करेगा।
1-अरबों को तास्सुब( अनुचित पक्ष पात ) के कारण
2-ग्रामों के मुख्याओं को उनके अहंकार के कारण
3- शसकों को उनके अत्याचार के कारण
4- धर्म विद्वानों को उनके हसद (ईर्ष्या) के कारण
5- व्यापारियों को उनके विश्वासघात के कारण
6- ग्रामवासियों को उनकी अज्ञानता के कारण
24- इमान के अंग
इमान अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि इमान के चार अंग हैं।
1- अल्लाह पर भरोसा।
2- अपने कार्यों को अल्लाह पर छोड़ना।
3- अल्लाह के आदेशों के सम्मुख झुकना।
4- अल्लाह के फ़ैसलों पर राज़ी रहना।
25- सद्व्यवहारिक उपदेश
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने व्यवहार को अच्छाईयों से सुसज्जित करो ।तथा गंभीरता व सहिष्णुता को धारण करो।
26- बुरे कार्यों से दूरी
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि दूसरे लोगों के कार्यों मे अधिक सख्त न बनो। तथा बुरे कार्यों से दूर रह कर अपने व्यक्तित्व को उच्चता प्रदान करो।
27- मनुष्य की रक्षा
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसकी सुरक्षा का प्रबन्ध अल्लाह की और से न होता हो । वह सुरक्षा करने वाले कुए में गिरने दीवार के नीचे दबने व नरभक्षी पशुओं से उसकी रक्षा करते हैं । परन्तु जब उसकी मृत्यु का समय आजाता है तो वह अपनी सुरक्षा को उससे हटा लेते है।
28-भविषय
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि मानव पर एक ऐसा समय आयेगा कि उस समय कोई प्रतिष्ठा न पायेगा मगर एक ऐसा आदमी जिसकी कोई अहमियत न होगी।उस समय अल्लाह के आदेशों की अवहेलना करने वाले को सद् व्यवहारी व बुद्धिमान तथा विश्वासघाती को धरोहर समाझा जायेगा। उस समय सार्वजनिक समप्ति को व्यक्तिगत सम्पत्ति व सदक़ा देने को हानि समझा जायेगा।इबादत को लोगों पर अत्याचार ज़रिया बनाया जायेगा। ऐसे समय में स्त्रीयां शासक होंगी दासियों से परामर्श किया जायेगा तथा बच्चे गवर्नर होंगें।
29- झगड़े के समय होशयारी
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि झगड़े के समय ऊँटनी के दो साल के बच्चे के समान बन जाओ क्योंकि न उससे सवारी का काम लिया जासकता है और न ही उसका दूध दुहा जासकता है।अर्थात झगड़े से इस प्रकार दूर रहो कि कोई आपको उसमे लिप्त न कर सके।
30- दुनिया
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि जब यह दुनिया किसी को चाहती है तो दूसरों की अच्छाईयां भी उससे सम्बन्धित कर देती है। तथा जब किसी से शत्रुता करती है तो उसकी अच्छाईयां भी उससे छीन लेती हैं।
31- अशक्त व्यक्ति
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि कमज़ोर व्यक्ति वह है जो किसी को अपना मित्र न बना सके। तथा उससे अधिक कमज़ोर वह व्यक्ति है जो किसी को मित्र बनाने के बाद उससे मित्रता को बाक़ी न रख सके।
32- -पापों का परायश्चित
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि गुनाहाने कबीरा (बड़े पापों) का परायश्चित यह है कि दुखियों के दुखः को दूर किया जाये तथा सहायता चाहने वालों की सहायता की जाये।
33- बुद्धि मत्ता का लक्ष्ण
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि जब मनुष्य की अक़्ल कामिल(बुद्धि परिपक्व )हो जाती है तो वह कम बोलने लगता है।
34- अल्लाह से सम्पर्क
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो व्यक्ति अल्लाह से अपना सम्पर्क बनाता है तो अल्लाह दूसरे व्यक्तियों से भी उसका सम्बन्ध स्थापित करा देता है। जो परलोक के लिए कार्य करता है अल्लाह उसके सांसारिक कार्यों को स्वंय आसान कर देता है। तथा जो अपनी आत्मा को स्वंय उपदेश देता है अल्लाह उसकी रक्षा करता है।
35- कमी व वृद्धि
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि दो व्यक्ति मेरे कारण मारे जायेंगे (1) वह व्यक्ति जो प्रेम के कारण मुझे अत्य अधिक बढ़ायेगा (2)वह व्यक्ति जो शत्रुता के कारण मुझे बहुत कम आंकेगा।
36- किसी के कथन को कहना
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि आप जब भी कोई कथन सुनो तो पहले उसको बुद्धि के द्वारा समझो तथा परखो बाद में किसी दूसरे से कहो। क्योंकि ज्ञान को नक़्ल करने वाले बहुत हैं परन्तु उसके नियमों का पालन करने वाले बहुत कम है।
37- पापों से दूरी का फल
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो व्यक्ति पाप करने की शक्ति के होते हुए भी पाप न करे वह फ़रिश्तों के समान है। तथा धर्म युद्ध में शहीद होने वाले व्यक्ति को भी उससे अधिक बदला नहीं दिया जायेगा।
38- पापों का अप्रियः अन्त
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि याद रखो कि पापों का आनंद शीघ्र समाप्त हो जाता है। तथा पापों का अप्रियः अन्त सदैव बाक़ी रहता है।
39- दुनिया की विशेषता
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि सांसारिक मोह माया की विशेषता यह है कि यह धोखा देती है, हानि पहुँचाती है व चली जाती है।
40- अन्तिम चरण के अनुयायी
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि मानवता पर एक ऐसा समय आयेगा कि जब इस्लाम केवल नाम मात्र के लिए होगा।कुऑन केवल एक रस्म बनकर रह जायेगा। उस समय मस्जिदें नई व सुसज्जित परन्तु मार्ग दर्शन से खाली होंगी। तथा इन मस्जिदों को बनाने वाले धरती के सबसे बुरे प्राणी होंगे वह फ़िसाद फैलायेंगे। जो फ़िसाद से दूर भागना चाहेगा वह उसको फ़िसाद की ओर पलटायेंगें।अल्लाह तआला अपनी सौगन्ध खाकर कहता है कि मैं ऐसे व्यक्तियों को इस प्रकार फसाऊँगा कि सूझ बूझ रखने वाले भी परेशान हो जायेंगे। हम अल्लाह से चाहते हैं कि हमारी असतर्कता को अनदेखा करे