Thursday 10 March 2016

खैबर फतह

अबू मंज़ूर बयान करते हैं कि जब हुज़ूर नबी-ए-अकरम सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम ने ख़ैबर को फ़तह किया तो आप सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम ने माल-ए-ग़नीमत में एक स्याह गधा पाया और वो प-ब-ज़ंजीर था। हुज़ूर नबी-ए-अकरम सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम ने उससे कलाम फ़रमाया तो उसने भी आप सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम से कलाम किया... हुज़ूर नबी-ए-अकरम सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम ने उसे फ़रमाया: तुम्हारा नाम क्या है? उसने अर्ज़ किया: मेरा नाम यज़ीद बिन शहाब है, अल्लाह तआला ने मेरे दादा की नस्ल से साठ गधे पैदा किए, उनमें से हर एक पर सिवाए नबी के कोई सवार नहीं हुवा मैं तवक़्क़ो करता था कि आप मुझ पर सवार हों, क्योंकि मेरे दादा की नस्ल में सिवाए मेरे कोई बाक़ी नहीं रहा और अम्बिया-ए-किराम में सिवाए आपके कोई बाक़ी नहीं रहा... मैं आपसे पहले एक यहूदी के पास था, मैं उसे जान-बूझ कर गिरा देता था... वो मुझे भूका रखता और मुझे मारता पीटता था...। रावी बयान करते हैं कि हुज़ूर नबी-ए-अकरम सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम ने उससे फ़रमाया: आज से तेरा नाम याफ़ूर है...। ऐ याफ़ूर! उसने लब्बैक कहा रावी बयान करते हैं कि हुज़ूर नबी-ए-अकरम सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम उस पर सवारी फ़रमाया करते थे, और जब उससे नीचे तशरीफ़ लाते तो उसे किसी शख़्स की तरफ़ भेज देते... वो दरवाज़े पर आता उसे अपने सर से खटखटाता और जब घरवाला बाहर आता तो वो उसे इशारा करता कि वो हुज़ूर नबी-ए-अकरम सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम की बात सुने... पस जब हुज़ूर नबी-ए-अकरम सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम इस दुनिया से ज़ाहिरी पर्दा फ़र्मा गए तो वो अबू हैसम बिन तैहान के कुँवें पर आया और हुज़ूर नबी-ए-अकरम सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम के फ़िराक़ के ग़म में उसमें कूद पड़ा, वो कुँआं उसकी क़ब्र बन गया...।

1: (इमाम इब्ने असाकिर, फ़ी तारीख़ मदीना-ओ-दमिश्क़, 4 /232)
2: (इमाम इब्ने कसीर, फ़ी अल बिदाया-वन-निहाया, 6 / 151)

एक मुस्लमान दूसरे मुस्लमान का भाई है

हुज़ूर नबी-ए-अकरम सल अल्लाहू अलैहि वआलेही वसल्लम ने फ़रमाया: एक मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है, ना वो उस पर ज़ुल्म करता है, और ना उसे बे-यार-ओ-मददगार छोड़ता है। जो शख़्स अपने किसी (मुसलमान) भाई की हाजत-रवाई करता है, अल्लाह तआला उसकी हाजत-रवाई फ़रमाता है। और जो शख़्स किसी मुसलमान की (दुनियावी) मुश्किल हल करता है, अल्लाह तआला उसकी क़यामत की मुश्किलात में से कोई मुश्किल हल फ़रमाएगा, और जो शख़्स किसी मुसलमान की पर्दापोशी करता है, अल्लाह तआला क़यामत के दिन उसकी पर्दापोशी करेगा।

सहीह बुख़ारी, किताबुल मज़ालिम, बाब ला यज़लिमू अल मुस्लिम अल मुस्लिमू वल असलमा, 2 : 862, रक़म : 2310,


Kisi ko bura bhala na kaho


!!....बुदर्बारी.....!!
एक दिन हजरत इमाम जैनुल आबिदीन (रजी अल्लाहु अन्हु) घर से कही तशरिफ ले जा रहे थे की रास्ते मे किसी गुस्ताख ने आपको बुरा भला कहना शुरु कर दिया। हजरत इमाम ने उससे फरमाया की भाई जो कुछ तुमने मुझसे कहा अगर मै वाकइ ऐसा हुं तो खुदा मुझे माफ फरमाये।
यह सुनकर वह शख्स बड़ा शर्मीन्दा हुआ और बढ़कर आपकी पेशानी चुमकर कहने लगा हुजुर! जो कुछ मैनें कहा आप हरगीज ऐसे नही। मै ही झुठा हुं। आप मेरी मग्फिरत की दुआ फरमायें। आपने फरमाया अच्छा जाओ खुदा तुम्हे माफ फरमाये।
(रौजुर्रियहीन, सफा-56)
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✍मुहम्मद अरमान गौस....
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♥सबक : अल्लाह वालो की यह सिरत है की बुराई का बदला कुछ ऐसे तरिके से देते है की खताकार शर्मिन्दा होकर अपनी खता से किनारा कर लेते है और नेकी एख्तियार कर लेते हैं।


इस्लाम में महिलाओ का स्थान

इस्लाम में महिलाओं के सम्मान को लेकर आधुनिक लेखको ने तरह तरह की भ्रांतियां फैला दी हैं । जिसके कारण इस्लाम धर्म को लेकर भी लोगों की ये धारणा है कि वहां नारी की बहुत उपेक्षा होती है, मुसलमान एक से ज़ाया शादियां करते हैं और नारी को मात्र भोग की वस्तु समझा जाता है। उन्हें कोई अधिकार प्राप्त नहीं हैं। लेकिन सच्चाई इससे एकदम अलग है। ये सही है कि लोग इस्लाम की ग़लत व्याख्या करके इसका फ़ायदा उठाते हैं लेकिन इस्लाम में नारी को हव्वा की बेटी को सम्मान के योग्य समझा गया है और उसको मर्द के समान ही अधिकार दिए गए हैं।

              ★इस्लाम में महिलाओं का स्थान★

इस्लाम में महिलाओं को बहुत ऊंचा स्थान दिया गया है और उन्हें जीवन के हर भाग में महत्व दिया गया है। माँ, पत्नी, बेटी, बहन, विधवा और चाची-मौसी के रूप में भी उसे सम्मान दिया गया है।

माँ के रूप में सम्मान

क़ुरआन में साफ कहा गया है कि माँ के प्रति कृतज्ञ होने का मतलब है मेरे (ख़ुदा) के प्रति कृतज्ञ होना। क़ुरआन में लिखा है-“हमने मनुष्य को उसके अपने माँ-बाप के मामले में ताकीद की है – उसकी माँ ने निढाल होकर उसे पेट में रखा और दो वर्ष उसके दूध छूटने में लगे – मेरे प्रति कृतज्ञ हो और अपने माँ-बाप के प्रति भी क्योंकि अंततः तुम्हें मेरी ओर ही आना है।”

कुरआन ने यह भी कहा गया है – “माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो। अगर उनमें से कोई एक या दोनों ही तुम्हारे सामने बूढ़े हो जाते हैं तो उन्हें ‘उँह’ तक न कहो और न उन्हें झिड़को, बल्कि उनसे शिष्टा्पूर्वक बात करो और उनके आगे दयालुता से नम्रता की भुजाएँ फ़ैलाए रखो और कहो, “मेरे रब! जिस प्रकार उन्होंने बालकाल में मुझे पाला है, तू भी उनपर दया कर।”

इस बारे में पैग़बर मुहम्मद एक वाक़्या सुनाते हैं। एक व्यक्ति उनके पास आया और पूछा कि मेरे अच्छे व्यवहार का सब से ज़्यादा अधिकारी कौन है?
पैग़बर ने फरमायाः तुम्हारी माता…।
उसने पूछाः फिर कौन ?
कहाः तुम्हारी माता…।
पूछाः फिर कौन ?
कहाः तुम्हारी माता…।
पूछाः फिर कौन ?
कहाः तुम्हारे पिता ।
यानी मां को पिता की तुलना में तीन गुना अधिक अधिकार प्राप्त है। हदीस में लिखा है कि माता पिता की अवज्ञा का मतलब अल्लाह की अवज्ञा है।

पत्नी के रूप में सम्मान

क़ुरआन में लिखा है कि पुरुष को अपनी पत्नी से भला व्यवहार करना चाहिए। पत्नी में कोई एक बुरी आदत की वजह से पति को उसे बुरा नहीं समझना चाहिए क्योंकि हो सकता है उसमें कुछ अच्छी आदतें बी हों।

बेटी के रूप में सम्मान

पैग़बर मुहम्मद ने फरमाया है कि “जिसने दो बेटियों का पालन-पोषन कर उनका अच्छी जगह निकाह करवा दिया वह इन्सान क़यामत के दिन हमारे साथ होगा। जिसने बेटियों की परवरिश के दैरान कष्ट उठाया और वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करता रहा तो यह उसके लिए नरक के दरवाज़े बंद कर देंगी।

बहन के रूप में सम्मान

क़ुरआन में लिखा है कि अगर किसी की तीन बेटियाँ या तीन बहनें हैं और वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करता है तो उसे स्वर्ग मिलेगा।

विधवा के रूप में सम्मान

इस्लाम ने विधवाओं की भावनाओं का न सिर्फ़ बड़ा ख़्याल रखा गया है बल्कि उनकी देख भाल और उन पर ख़र्च करने को बड़ा पुण्य बताया गया है।

पैग़बर मुहम्मद ने कहा है: ”विधवाओं और निर्धनों की देख-रेख करने वाला ऐसा है मानो वह हमेशा दिन में रोज़ा रख रहा हो और रात में इबादत कर रहा है।”

ख़ाला ( मौसी ) के रूप में सम्मान

इस्लाम ने खाला के रूप में भी महिलाओं को सम्मनित करते हुए उसे मां का दर्जा दिया गया है।
                 -:इस्लाम में औरत का मुकाम :-

इस्लाम को लेकर यह गलतफहमी है और फैलाई जाती है कि इस्लाम में औरत को कमतर समझा जाता है। सच्चाई इसके उलट है। हम इस्लाम का अध्ययन करें तो पता चलता है कि इस्लाम ने महिला को चौदह सौ  साल पहले वह मुकाम दिया है जो आज के कानून दां भी उसे नहीं दे पाए।
इस्लाम में औरत के मुकाम की एक झलक देखिए।
जीने का अधिकार
शायद आपको हैरत हो कि इस्लाम ने साढ़े चौदह सौ साल पहले स्त्री को दुनिया में आने के साथ ही अधिकारों की शुरुआत कर दी और उसे जीने का अधिकार दिया। यकीन ना हो तो देखिए कुरआन की यह आयत-
          'और जब जिन्दा गाड़ी गई लड़की से पूछा जाएगा, बता तू किस अपराध के कारण मार दी गई?"                                                                                     (कुरआन, 81:8-9)
यही नहीं कुरआन ने उन माता-पिता को भी डांटा जो बेटी के पैदा होने पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हैं-
       'और जब इनमें से किसी को बेटी की पैदाइश का समाचार सुनाया जाता है तो उसका चेहरा स्याह पड़ जाता है और वह दु:खी हो उठता है। इस 'बुरी' खबर के कारण वह लोगों से अपना मुँह छिपाता फिरता है। (सोचता है) वह इसे अपमान सहने के लिए जिन्दा रखे या फिर जीवित दफ्न कर दे? कैसे बुरे फैसले हैं जो ये लोग करते हैं।'
                                                  (कुरआन, 16:58-59)
बेटी
इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-
बेटी होने पर जो कोई उसे जिंदा नहीं गाड़ेगा (यानी जीने का अधिकार देगा), उसे अपमानित नहीं करेगा और अपने बेटे को बेटी पर तरजीह नहीं देगा तो अल्लाह ऐसे शख्स को जन्नत में जगह देगा।
                                                    (इब्ने हंबल)
अन्तिम ईशदूत हजऱत मुहम्मद सल्ल. ने कहा-
'जो कोई दो बेटियों को प्रेम और न्याय के साथ पाले, यहां तक कि वे बालिग हो जाएं तो वह व्यक्ति मेरे साथ स्वर्ग में इस प्रकार रहेगा (आप ने अपनी दो अंगुलियों को मिलाकर बताया)।
मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-
जिसके तीन बेटियां या तीन बहनें हों या दो बेटियां या दो बहनें हों और वह उनकी अच्छी परवरिश और देखभाल करे और उनके मामले में अल्लाह से डरे तो उस शख्स के लिए जन्नत है। (तिरमिजी)
पत्नी
वर चुनने का अधिकार : इस्लाम ने स्त्री को यह अधिकार दिया है कि वह किसी के विवाह प्रस्ताव को स्वेच्छा से स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। इस्लामी कानून के अनुसार किसी स्त्री का विवाह उसकी स्वीकृति के बिना या उसकी मर्जी के विरुद्ध नहीं किया जा सकता।
बीवी के रूप में भी इस्लाम औरत को इज्जत और अच्छा ओहदा देता है। कोई पुरुष कितना अच्छा है, इसका मापदण्ड इस्लाम ने उसकी पत्नी को बना दिया है। इस्लाम कहता है अच्छा पुरुष वही है जो  अपनी पत्नी के लिए अच्छा है। यानी इंसान के अच्छे होने का मापदण्ड उसकी हमसफर है।
पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-
तुम में से सर्वश्रेष्ठ इंसान वह है जो अपनी बीवी के  लिए सबसे अच्छा है। (तिरमिजी, अहमद)
शायद आपको ताज्जुब हो लेकिन सच्चाई है कि इस्लाम अपने बीवी बच्चों पर खर्च करने को भी पुण्य का काम मानता है।

 पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-
तुम अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए जो भी खर्च करोगे उस पर तुम्हें सवाब (पुण्य) मिलेगा, यहां तक कि उस पर भी जो तुम अपनी बीवी को खिलाते पिलाते हो। (बुखारी,मुस्लिम)।
पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने कहा-
आदमी अगर अपनी बीवी को कुएं से पानी पिला देता है, तो उसे उस पर बदला और सवाब (पुण्य) दिया जाता है। (अहमद)
मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-
महिलाओं के साथ भलाई करने की मेरी वसीयत का ध्यान रखो। (बुखारी, मुस्लिम)
माँ
क़ुरआन में अल्लाह ने माता-पिता के साथ बेहतर व्यवहार करने का आदेश दिया है,
'तुम्हारे स्वामी ने तुम्हें आदेश दिया है कि उसके सिवा किसी की पूजा न करो और अपने माता-पिता के साथ बेहतरीन व्यवहार करो। यदि उनमें से कोई एक या दोनों बुढ़ापे की उम्र में तुम्हारे पास रहें तो उनसे 'उफ् ' तक न कहो बल्कि उनसे करूणा के शब्द कहो। उनसे दया के साथ पेश आओ और कहो-
'ऐ हमारे पालनहार! उन पर दया कर, जैसे उन्होंने दया के साथ बचपन में मेरी परवरिश की थी।'
                                                                                             (क़ुरआन, 17:23-24)
इस्लाम ने मां का स्थान पिता से भी ऊँचा करार दिया। ईशदूत हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा-
'यदि तुम्हारे माता और पिता तुम्हें एक साथ पुकारें तो पहले मां की पुकार का जवाब दो।'
एक बार एक व्यक्ति ने हजरत मुहम्मद (सल्ल.) से पूछा
'हे ईशदूत, मुझ पर सबसे ज्यादा अधिकार किस का है?'
उन्होंने जवाब दिया 'तुम्हारी माँ का',
'फिर किस का?' उत्तर मिला 'तुम्हारी माँ का',
 'फिर किस का?' फिर उत्तर मिला 'तुम्हारी

रो रो के मुस्तफा ने दरिया बहा दीये है।

.         【रो रो के मुस्तफा ने दरया बहाँ दिये है】

एक मर्तबा तमाम फरिश्तो के सरदार हज़रते जिबराईल अलैहिस्सलाम नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम कि बारगाह मे हाज़िर हुवे और अर्ज़ कि या रसूलुल्लाह मेने नूह अलैहिस्सलाम कि उम्मत को जहन्नुम मे जाते देखा, ,,मेने हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम कि उम्मत को जहन्नुम मे जाते देखा, ,,,मेने ईसा अलैहिस्सलाम कि उम्मत को जहन्नुम मे जाते देखा और इतना फरमाने के बाद जिबराईल अलैहिस्सलाम खामोश हो गये तो आप【स0 अ0 व स0】 ने अर्ज़ किया क्या तुमने मेरी उम्मत को जहन्नुम मे जाते देखा  ??
आप खामोश रहे, ,,फिर पुछा ऐ जिबराईल ये बताओ क्या तुमने मेरी उम्मत को जहन्नुम मे जाते देखा ?? तो ये सुनकर हज़रते जिबराईल ने अर्ज़ किया हाँ या रसूलुल्लाह, ,,,,ईतना सुनना था कि आप【स0 अ0 व स0】 कि आँखो मे आँसु आ गये दिल तङप गया आप बे ईन्तिहाँ रोने लगे और रोते हुवे अपनी उम्मत के गम मे सेहराओ और जंगल मे निकल गये और एक गार 【गुफा】 मे पहुच कर सज्दे मे सर रख कर रोते हुवे बस ये फरमा रहे थे कि "मेरी उम्मत, मेरी उम्मत "ईधर सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हु अजमईन अपने आका को मदिने मे ना पाकर बेचेन हो गये कि हमारे आका हुजूर"【स0 अ0 व स0】 कहाँ तशरीफ ले गये सब जगह ढुढ लिया लेकिन कमली वाले आका का कही पता ना चला सहाबा किराम ढुढते ढुढते जब जंगल कि तरफ निकले तो आपको एक बकरी चराने वाला चरवाहा मिला सहाबा किराम ने उससे पुछा कि क्या तुमने मोहम्मदे अरबी【स0 अ0 व स0】को कही देखा है ??
वो चरवाह कहने लगा मुझे नही मालुम तुम किसकी बात कर रहे हो लेकिन उस गुफा मे एक शख्स रो रहा है उनकी दर्द भरी रोने कि अवाज़ सुनकर मेरी बकरियों ने घास को चरना तक छोङ दिया है सहाबा किराम ये सुनकर समझ गये कि ये हमारे आका हुजूर 【स0 अ0 व स0】 हि है उस गुफा मे पहुच कर सहाबा किराम ने देखा कि नबी ए करीम【स0 अ0 व स0】सज्दे मे रखकर अपनी उम्मत के गम मे रो रहे है और रोते हुवे बस अपनी उम्मत को याद कर रहे है ,,,,ज़मिन है कि आपके मुबारक आँसूओ से तर हो गई है लेकिन किसी कि हिम्मत नही हुवी कि हुजूर को सज्दे से उठाए फिर हुजूर कि प्यारी बेटी हज़रत फतिमातुज़्ज़ेहरा रज़ियल्लाहु अन्हा को बुलाया गया ,,,,हजरत फतिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने आ कर अर्ज़ कि या रसूलुल्लाह अपना सरे मुबारक ऊठाईये फिर अल्लाह से दुआ कि या अल्लाह अपने मेहबुब कि उम्मत को अपने मेहबुब के हवाले कर दे ,,,इतने मे जिबराईल अलैहिस्सलाम अल्लाह का पैगाम ले कर तशरीफ ले आए और अर्ज किया या रसूलुल्लाह सज्दे से सरे मुबारक ऊठाईये अल्लाह आपकी उम्मत फेसला आपके हवाले करता है और आपको शफाअत का मकाम अता फरमाता है आपकी शफाअत कुबुल कि जायेगी,,,,,【फतेहुल रब्बानी सफा २६७】

फलसफा -वो हमारे गम मे बेकरार रहते थे और एक हम है कि आपकी मोहब्बत मे आपके बताए हुवे तरीके पर भी ना चल पा रहे है जबकी उसी मे हमारी कामयाबी है क्या यही मोहब्बत का तकाज़ा है ??

आपस में बैर कभी ना रखना।

رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا:
 ’’ہفتہ میں دو مرتبہ پیر اور جمعرات کے دن لوگوں کے اعمال اللہ تعالیٰ کے سامنے پیش ہوتے ہیں۔ اللہ تعالیٰ سب مسلمان بندوں کو بخش دیتا ہے، سوائے اس کے جس کی کسی مسلمان بھائی سے عداوت ہو‘‘۔          (مسلم شریف)

Wednesday 9 March 2016

समाज में अमीरि और गरीबी क्यों?

«
☆ समाज में अमीरी और गरीबी क्यों ? ….
अल्लाह ने रोज़ी का वितरण अपने (मर्जी) से रखा है, कुछ लोगों को अधिक से अधिक दिया तो कुछ लोगों को कम से कम, हर युग में और हर समाज में मालदार और गरीब दोनों का वजूद रहा है, सवाल यह है कि आखिर अल्लाह ने अमीरी और गरीबी की कल्पना क्यों रखी ?
– इसका उत्तर यह है कि ऐसा अल्लाह ने बहुत बड़ी तत्वदर्शिता के अंतर्गत किया। ताकि एक वर्ग दूसरे वर्ग के काम आ सके, प्रत्येक की आवश्यकताएं एक दूसरे से पूरी होती रहें। अल्लाह ने फरमायाः

♥ अल-कुरान: “और एक को दूसरे पर प्रधानता प्रदान किया ताकि तुम्हें आज़माए उन चीज़ों में जो तुम को दी है.” – (सूरः अन’आन:165)

*मान लें कि यदि सभी लोग मालदार हो जाते तो लोगों का जीवन बिताना कठिन होता, एक का काम दूसरे से हासिल नहीं हो सकता था, और हर एक दूसरे पर आगे बढ़ने की कोशिश करता, इस प्रकार देश और समाज का विनाश होता. जबकि लोगों के स्तर में अंतर होने के कारण अल्लाह ने जिसे कम दिया है उसे कल महाप्रलय के दिन यदि वह ईमान वाला रहा तो वहां की नेमतों से मालामाल करने का वादा किया है।

उसी प्रकार निर्धनों को कुछ ऐसी हार्दिक शान्ति प्रदान की है जिस से मालदारों का दामन खाली है। इसके साथ साथ अल्लाह ने उनके प्रति लोगों के मन में दया-भाव, शुभचिंतन, सहानुभूति की भावना पैदा की, और मानव समाज का अंग सिद्ध किया ताकि धनवान उनका ख्याल करें, यही नहीं अपितु मालदारों को गरीबों पर खर्च करने का आदेश दिया, और उनके मालों में गरीबों का अधिकार ठहराया। अल्लाह तआला ने फरमायाः
♥ अल-कुरान: “अल्लाह के माल में से तुम उन्हें (निर्धनों को) दो जो उसने तुम्हें दिया है।” – (कुरआनः सूरः नूरः33) :

*पता यह चला कि इंसान के पास जो कुछ है उसका अपना नहीं है बल्कि अल्लाह का दिया हुआ है,
– इस लिए यदि मनुष्य कुछ पैसे अल्लाह के रास्ते में खर्च करता है तो उसे इस पर गर्व का कोई अधिकार नहीं है। यह है अल्लाह की वह हिकमत जिस से हमें समाज में निर्धनों के वजूद के प्रति संतुष्टी प्राप्त होती है परन्तु यह कहना कि वह हीन अथवा तुच्छ हैं या उनके पापों का परिणाम है, या उनको किसी विशेष जाकि की सेवा हेतु पैदा किया गया है, बुद्धिसंगत बात नहीं लगती।

आज भारतीय समाज में यही विचार फैलने के कारण कुछ वर्ग पशुओं के समान जीवन बिता रहे हैं। उनको कोई अधिकार प्राप्त नहीं है और स्वयं उन्हों ने भी इस प्रथा को स्वीकार कर लिया है जो मावन जाति पर बहुत बड़ा अत्याचार है।

*इस्लाम ऐसे वर्गों की हर प्रकार से सहायता करने का आदेश देते हुए मालदारों के मालों में उनका अधिकार रखता है और उनको निर्धन होने के कारण किसी भी मानवीय अधिकार से वंचित नहीं रखता। यह है मानव स्वभाव से मेल खाने वाला इस्लाम का प्राकृतिक नियम …

Friday 4 March 2016

जुम्मा के नमाज़ की शुरुवात/jumaa ke namaz ki shuruwat

-: Jumma Ke Namaz Ki Shuruwat :-
» Jumma Ki Namaz Sabse Pehle 12 Rabi-Ul-Awwal 1 Hijri Ko Nabi-E-Paak (Sallallahu Alaihi Wassalam) Ki Imamat Me Parhi Gayi, Jisme Sahabao Ki Tadaat 100 Thi. (Mohsine Insaniyat 703)
∗ Jumme Ki Mubarakbaad Dene Ka Bhi Ajr Hai !!
» Hadees: Aye Musalmano Ke Giroh! Beshaq Ye Jumma Woh Din Hai Jisko Allah Ne Eid Banaya Hai.(Mishkat Hadees No. 123)
» Hadees: Jisne Jumma Ki Mubarakbaad Di, Uss Par Jannat Wajib Hai.
» Hadees: Jab Koi Banda Kisi Momin Bhai Ko Jumma Ki MubarakBaad Deta Hai, Toh Jannat Me Uske Liye 1 Darakht Laga Diya Jata Hai.
∗ Jumme Ke Din Kasrat Se Duruud Parhe !!
» Hadees: Nabi-e-Kareem (Sallallahu Alaihay Wasallam) Ne Farmaya,Jo Mujhpar Jumma Ke Din Durood Parhe, Mai Uski Shafa’at Karunga. (Kanzul Ummat Jild, 1 Safa 225 Hadees : 2236)
» Hadees: Jisne Jumma Ke Din Mujhpar 200 Bar Durood Parha,Uske 200 Saal Ke Guhaan Maaf Ho Gaye.(Kanzul Ummal Hadith No. 2238)
» Hadees: Jo Jumme Ke Din Ya Raat 100 Bar Durood Parhe Uski 100 Hajate Puri Hongi. 70 Aakhirat Me Aur 30 Dunyavi.(Musnad Abu)
∗ Jumme Ki Namaz Na Chhore !!
» Hadees: Jisne Jumme Ki Namaz (2 Rakat Jumma) Se Pehle, 4 Sunnat Namaz Aur Jumma Ke Baad 4 Sunnat, 2 Sunnat, 2 Nafil Parhi, Allah Uss Par Jahannam Ki Aag Haram Kar Dega.(Tizimi V1 Hadees:410)
» Hadees: Jumme Ki Namaz Ke Liye Azan Di Jaye, Toh Tum Allah Ki Yaad Ke Liye Chal Pado, Ke Tumhare Liye Behtar Hai Agar Tum Jante Ho. (Bukhari Sharif)
» Hadees: Juma Ki Namaz Jumma Se Juma Tak Ke Liye Kaffara Hai.Shart Hai Ki Gunah-e-Kabeera Se Bacha Jaye.(Muslim Sharif)
» Hadees: Jo Shaks Jumma Ki Namaz Jama’at Ke Sath Parhta Hai,Allah Uske Liye 1 Maqbool Haj Ka Sawab Likhta Hai.(Ghuniya-Tul-Taliban)
» Hadees: Jo Shakhs Bagair Kisi Uzr Ke “3″ Juma Ki Namaze Chhor Deta Hai,Allah Ta’ala UsKe Dil Par Mohar Laga Deta Hai (Ibn-E-Maja, Jild-1, Page No.75)
» Hadees: Jo Shakhs Khutba Shuru Hone Ke Bad Harkat Karta Hai, Ya Pehlu Badalta Hai Woh Lagr(Bekar) Amal Hai. Khutba Shuru Hone Ke Baad Batein Karne Wala Ghada (Donkey) Hai.(Ahmad,Tibrani)
» Hadees: Jumma Ke Din-Raat Me 24 Pal Hai, Har Pal Me Allah Ta’ala 600 Jahannamiyon Ko Jahannam Se Azaad Kar Deta Hai.(Abu Ya’ala)
∗ Jumme Ke Din Khas Tor Se Gusl Kare, Ye Jumma Ki Sunnato Me Se 1 Hai !!
» Hadees: Nabi-E-Akram (Sallallahu Alaihay Wasallam) Ne Farmaya,Har Baaligh Par Jumma Ke Din Ghusl Karna Waajib Hai.(Bukhari J:1 S:121)
» Hadees: Jumma Ka Gusl Aadmi Ke Gunaho Ko, Uski Baal Ke Jad Se Kheech Leta Hai.(Tibrani)
» Hadees: Jo Shaks Jumma Ke Din Gusl Karke Awwal Waqt Me Masjid Jaye,Goya Usne Oont(Camel) Ki Qurbani Ki.(Muslim Sharif)
∗ Duao Ki Qubuliyat Ka Din Bhi Hai Jumma !!
» Hadees: Juma Ke Din Ek Pal Hai Jo Bhi Dua Iss Pal Me Ki Jaye Woh Qubool Hoti Hai. Jo Shakhs Jumma Ke Din Sura-E-Kahaf Padhega Toh Uske Liye Dono Jumma Ke Darmiyan Ek Noor Chamakta Rahega.(Nisaai Sharif)
» Hadees: Jumma Ke Din 1 Neki Ka Sawab, 70 Guna (7o Times) Aur Gunaah Karne Ka Azab 70 Guna Se Bhi Zyada Hai.(Mirat Jil 2 Page323)
∗ Jumma Ki Sunnate
» Gusl Karna, Saaf Kapde Pehanna, Khushbu Tel Surma Lagana, Nakhun Katna, Masjid Jald Jana Aur Paidal Jana, Sureh Kahaf Parhna, Musafa Karna Aur Jumma Ki Mubarakbad Dena.
Sabak : Toh Mere Bhaiyo Aur Behno. !! Ye Toh Sirf Kuchh Hi Fazilate Likhi Hai, Jumme Ki Toh Itni Fazilat Hai Ke Aap Soch Bhi Nahi Sakte. Ye Gareebo Ka Haj Hai, Gunaho Ka Kaffara Hai, Dua Ke Qubuliyat Ka Din Hai.
Isliye Jumme Ki Taiyari Eid Ki Tarha Kare, Khub Durood Parhe Aur Sunnato Par Amal Kare. Aur Ise Jitna Ho Sake Failaye.(SHARE KARE)
Allah Uss bande Ko Beshumar Neamato Se Nawaje Jisne Yeh Nayab Mubarak Baatein Ham Tak Pohchayi.
Likhne Me Koi Galti Hui Ho Toh Hame Zarur Ittela Kare…
!!!! Dua Ki Darkhwast !!!!
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Allah hamen islami Masail ko sikhne aur samajhne Ki toufiq ataa farmaye  *Aameen*

जुमा की नमाज़/jumaa ki namaz

जुमा की नमाज हर आजाद और तन्दुरुस्त मुसलमान पर
फर्ज है ।मरीज गुलाम मुसाफिर, औरत ,लड़के (वे लड़के
जो ना-बालिक है ) बीमार इस से अलग है । ईमाम और
ईमाम के अलावा अगर दो आदमी और
हो तो जुमा की नमाज के लीये शहर या बड़े कस्बे
का होना शर्त है । मामूली गाँव हो तो उस में
जुमा की नमाज फर्ज नही है । वहाँ के लोगों को जूहर
की नमाज अदा करनी चाहिये । जुमा के दिन नहा कर ,
पाक व साफ कपड़े पहने और जितना सवेरे हो सके मस्जिद
में जाकर कलाम पाक की तीलावत करे और खुदा से दुआ
माँगे । अगर किसी वजह से देर हो जाए
तो जुमा की अजान पहले जरूर पहुँच जाए । अगर जवाल
का वक्त न हो तो पहले दो रकात नमाज पढ़ ले , फिर बैठे ।
दो रकाअत नमाज मस्जिद मे दाखिल होने का तोहफा है ,
फिर चार रकअत सुन्नत जुमा की नमाज से पहले पढ़े । इस
के बाद जब ईमाम खुत्बा पढ़ने के लीये मिम्बर पर बैठे
या ईमाम खुत्बा पड़ता हो , उस वक्त किसी किस्म
की बात न करे और न नमाज पढ़े , बल्कि खामोश रहे और
गौर से खुत्बा सुने , चाहे समझे या ना समझे , सर खोल कर
या टेक लगा कर ना बैठे । जुमा की नमाज शरई उजर के
बगैर छोड़ना बहुत बड़ा गुना है अगर किसी वजह से नमाज
ना मिले तो उस को जुह अदा कर लेनी चाहिये....

याजूज माजूज/yajuj Majuj


बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम.
किस्सा याजूज माजूज।
दज्जाल के खात्मे के बाद हजरत ईसा अलैहिस्सलाम को अल्लाह की तरफ़ से हुक्म होगा ऐ ईसा! तुम सारे मुसलमानों को कोहेतूर पर ले जाओ...। (कोहेतूर जो अरब के एक पहाड़ का नाम है...।)
अल्लाह तआला का फ़रमान होगा: अब हम अपनी ऐसी मखलूक को निकालने वाले हैं कि किसी के अंदर उनसे मुक़ाबले की ताक़त नही है... वो याजूज माजूज हैं...।

याजूज माजूज हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की नस्ल से हैं, हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के शुरुआती तीन बेटे हाम, शाम, याफिज़ उनमें से एक बेटे की औलाद हैं याजूज माजूज...।

ये इंतिहाई जाहिल, अनपढ़, काफ़िर, खूंखार, जंगली किस्म के लोग हैं ये दुनिया के किसी कोने में आज भी आबाद हैं... यकीनी तौर पर कोई नहीं बता सकता ये कहाँ आबाद हैं...।

साइंसदानो ने बहुत खोज की लेकिन वो इनका पता नहीं लगा सके, और कभी पता लगा भी नहीं सकते क्योंकि अल्लाह तआला इनको कयामत के करीब ज़ाहिर करेगा...। हज़रत जुलकरनैन जो उस वक़्त के बादशाह थे जिनकी बादशाहत को कुरआन ने ब्यान किया है उनकी रियाया (प्रजा) ने याजूज माजूज के जुल्म-ओ-सितम और कत्ल-ओ-गारी की अपने बादशाह से शिकायत की और तब हज़रत जुलकरनैन ने अपनी रियाया की मदद से याजूज माजूज की पूरी कौम को एक दिवार के पीछे बंद कर दिया... याजूज माजूज की ताकत को मद्दे नज़र रखते हुए बादशाह जुलकरनैन ने दिवार को तांबे के लुआब से बनबाया...।

उधर जब ईसा अलैहिस्सलाम सारे मुसलमानों को लेकर कोहेतूर पर पहुंच जाएंगे तभी अल्लाह पाक़ याजूज माजूज को आज़ाद कर देगा आज़ाद होते ही ये कौम सारी जमीन पर फैल जाएंगी फिर लूट, मार, कत्लो, गारत, हलाकत, तबाही, बर्बादी शुरू कर देगी...।

जब याजूज माज़ूज़ की फौज़ की पहली टुकड़ी मुल्क शाम के वहर ऐ तवरिया (मुल्क शाम की नदी) के पास से गुज़रेगी तो दरिया का सारा पानी पी जाएगी... जबकि वहर ऐ तवरिया जो दरिया है उसकी लम्बाई तकरीबन 10 मील है...। पहली टुकड़ी दरिया का सारा पानी पी के दरिया को खुश्क कर देगी, जब पीछे वाले लोग दरिया के पास पहुंचेगे तो एक दूसरे से कहेंगे यहाँ किसी ज़माने में पानी होगा,  जबकि वो इस बात से गाफ़िल होंगे कि अभी अभी हमारे भाईयों ने पानी पिया है...। फिर एक दूसरे से कहेंगे हमने ज़मीन की सारी मखलूक को मार दिया अब जो असमान में मखलूक है उसे भी मारना चाहिये, फिर ये लोग जबल ए खमर पहुंच जायेंगे... जबल ए खमर बैतूल मुकद्दस के करीब एक पहाड़ का नाम है, वहां खड़े होकर ये आसमानों की तरफ़ तीर चलाएंगे तीर जब वापस आएगा तो वो तीर खून में सना होगा,  याजूज माजूज बड़े खुश होंगे कि आसमान की मखलूक को भी मार दिया...।  अल्लाह जाने वो तीर परिंदों के खून से सने होंगे या अल्लाह की कुदरत से उनपर खून लगेगा बहरहाल याजूज माजूज ख़ुशी से झूम उठेंगे...।

उधर जो ईसा अलैहिस्सलाम मुसलमानों के साथ कोहेतूर पर होंगे वहां खाने पीने की चीजों का ये आलम हो जाएगा की एक भेड़ के सर की कीमत 100 दीनार से ज्यादा होगी, क्योंकि ज़मीन पर उतरने का मौक़ा नही होगा खाने पीने की चीज़े नायाब हो जाएंगी...।
फिर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम और सारे मुसलमान मिलकर अल्लाह से दुआ करेंगे कि ऐ अल्लाह! हमें याजूज माजूज के फितने से निजात दिला... अल्लाह दुआ को कुबूल कर लेगा और याजूज माजूज की तरफ़ नवफ़ की बीमारी भेज देगा... नवफ़ की बीमारी जो आज कल जानवरों में हो जाती है जिससे जानवर की गर्दन में कीड़े पढ़ने लगते हैं और जानवर मर जाता है...।

मज़ीद मालूमात के लिए पढ़े मुफ़्ती अब्दुर रऊफ सखरवी दारुल इफ्ता करांची की किताब "(याजूज माजूज)"