Friday 13 May 2016

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की जीवनी



हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम Moses (PBUH)

 

मूसा (Moses) सभी इब्राहिमी धर्मों में एक प्रमुख नबी (ईश्वरीय सन्देशवाहक) हैं । ख़ास तौर पर वो यहूदी धर्म के संस्थापक माने जाते हैं । बाइबल में हज़रत मूसा की कहानी दी गयी है, जिसके मुताबिक मिस्र के फ़राओ के ज़माने में जन्मे मूसा यहूदी माता-पिता के की औलाद थे पर मौत के डर से उनको उनकी माँ ने नील नदी में बहा दिया। उनको फिर फ़राओ की पत्नी ने पाला और मूसा एक मिस्री राजकुमार बने । बाद में मूसा को मालूम हुआ कि वो यहूदी हैं और उनका यहूदी राष्ट्र (जिसको फरओ ने ग़ुलाम बना लिया था) अत्याचार सह रहा है । मूसा का एक पहाड़ पर परमेश्वर से साक्षात्कार हुआ।

जब मूसा ईश्वरीय-आदेश पाने के लिए माउंट सेनाई (सेनाई पर्वत) पर चले. इस्राएल को यह डर सताने लगा कि वे लौट कर नहीं आएंगे और उन्होंने हारून से उनके लिए इस्राएल के ईश्वर की मूर्ति बनाने के लिए कहा हालांकि, हारून ने इस्राएल के परमेश्वर का प्रतिनिधि बनने से इनकार कर दिया. इस्राएलियों ने हारून को अभिभूत करने के लिए काफी शिकायत की थी, इसलिए उसने उनका अनुपालन किया और इस्राएलियों के कानों की सोने की बालियां इकट्ठी की. उसने उसे पिघलाया और सोने की एक जवान बैल की मूर्ती बनाई गई. बैल की पूजा कई संस्कृतियों में आम बात थी. मिस्र में, निष्क्रमण के विवरण के अनुसार जब इब्रानी (यहूदी) लोगों को आये अधिक समय नहीं हुआ था तब ही, एपिस बुल एवं बैल के सिर वाला खनुम पूज्य पात्र थे, जैसा कि कुछ लोगों का मानना है, निर्वासन के समय इब्रानी पुनर्जीवन प्राप्त कर रहे थे; वैकल्पिक रूप से, कुछ लोगों का विश्वास है कि इस्राएल के ईश्वर का संबंध चित्रित बछड़े/बैल देवता के रूप में धार्मिक रूप से आत्मसात और समन्वयता करने की प्रक्रिया के माध्यम से अंगीकृत कर लिया जाना था. मिस्रवासियों एवं इब्रानियों के मध्य प्राचीन पड़ोसियों में निकटरूप पूर्व में तथा ईजियन में, ऑरोक्स, वन्य बैल, की व्यापक रूप से पूजा की जाती थी, अक्सर चन्द्र बैल एवं ईएल के प्राणी के रूप में. इसकी मिनियोन अविभार्व के कारण यूनानी मिथक में क्रेटन बैल के रूप में उत्तरजीवी रहा. भारत में अनेक हिन्दुओं के लिए यह पूज्य है. यूनानियों (मिस्रवासियों) के बीच हाथोर को गाय के रूप में प्रतिनिधित्व प्राप्त है, एवं साथ ही साथ इसे आकाश गंगा के रूप में पेश किया जाता है, और अक्सर इसकी पहचान अपने पड़ोसी की देवी ईएल आशेरा के समकक्ष ही की गई. इब्रियों जनजातियों का विकास इन लोगों और पैन्थिओन के बीच होता गया.


अतः बछड़े की मूर्ति बनाई. हारून ने बछड़े के सामने एक वेदी भी बनाई और यह घोषणा भी कर दी कि इस्राएल के लोगों, ये तुम्हारे ईश्वर हैं, जो तुमलोगों का मिस्र की जमीन से बाहर ले आया है". और दूसरे ही दिन, इस्राएलियों ने सोने के बछड़े को भेंट अर्पित की और(अश्लील) नाच किया गया, उत्सव मनाया. मूसा ने जब उन्हें यह सबकुछ करते देखा तो वे उनसे क्रोधित हो गए, उन्होंने उन शिला लेखों को जिस पर ईश्वर ने इस्राएलियों के लिए अपने कानून लिखे थे, ज़मीन पर फेंक दिया.

सोने का बछड़ा बनाने और उसकी पूजा करने से दोषमुक्ति को क़ुरान की सूरा ताहा के [90-94] आयतों में देखा जा सकता है:

"इससे पहले ही हारून ने उनसे कहा था: "ऐ मेरे लोगों [इस्राएल के बच्चे] तुम्हारा इम्तिहान इसी में है: वास्तव में तुम्हारे मालिक (अल्लाह) हैं सबसे ज्यादा दयालु (रहमदिल); इसलिए मेरे अनुगामी बनो और मेरे आदेशों का अनुपालन करो" (90) उन्होंने कहा: "हम इस पंथ का त्याग नहीं करेंगे, लेकिन हम तब तक खुद को इसके लिए समर्पित कर देंगे जब तक कि मूसा वापस नहीं आते." (91) (मूसा) ने कहा: "हे हारून! किस बात ने तुम्हें पीछे कर दिया? (92) जबकि तुमने देखा कि वे गलत राह पर जा रहे थे. क्या तुमने तब मेरे आदेश की अवज्ञा की ?" (93) (हारून) ने जाब दिया: "ऐ मेरी मां के बेटे! (मुझे) मेरी दाढ़ी से न पकड़ो और न ही, मेरे सिर के (केशों) से! सचमुच मुझे इस बात का डर था कि आप कहीं यह न कहें कि "तू ने इस्राएल के बच्चों के बीच एक विभाजन खड़ा कर दिया है, और तू मेरे वचन का सम्मान नहीं करता है." (94)"

बाद में, अल्लाह ने मूसा से कहा कि उसके लोगों ने अपने आप को पाप में लिप्त कर लिया है, एवं उन्होंने उन्हें नष्ट कर देने की योजना बनाई है इस्राएलियों पर प्लेग की महामारी का आक्रमण हो गया. ईश्वर के अनुसार, एक दिन वे अवश्य इस्राएलियों के पाप लिए उनके पास आएंगे.

अल्लाह की मदद से उन्होंने फ़राओ को हराकर यहूदियों को आज़ाद कराया और मिस्र से एक नयी भूमि इस्राइल पहुँचाया । इसके बाद मूसा ने इस्राइल को अल्लाह द्वारा मिले "दस आदेश" दिये जो आज भी यहूदी धर्म का प्रमुख स्तम्भ है ।
1. माता-पिता का आदर करो

2. हत्या न करो

3.व्यभिचार न करो

4. चोरी न करो

5. झूठी गवाही न दो

६. एक ही ईश्वर है

७. छह दिन काम एक दिन आराम करो.

८.परस्त्री के पास न जाओ

9.दास, दासी और पशुओं की रक्षा करो

10. लालच मत करो

यहूदी धर्म के प्रमुख उपदेश:

यहूदी धर्म में धर्मानुयायियों के लिए कुछ उपदेश दिए गए हैं जो कि इस प्रकार हैं :

1. किसी पर अन्याय मत करो।

2. किसी का शोषण मत करो।

3. किसी से ब्याज मत लो, कम नफा लो।

4. किसी को भी मत सताओ।

5. गुलामों को गुलामी से मुक्त करो।

6. सदाचार का पालन करो।

7. लालच मत करो, झूठ मत बोलो।

8. ईश्वर सबसे बड़ा है, ईश्वर से प्रेम करो।

9. अपने भाई एवं सबका हित करो, मन वचन से कर्म करो।

10. अल्लाह ही ईश्वर है, उनका आदेश मानो।

11. प्रेम, करुणा, सत्य, ब्रह्मचर्य, श्रमनिष्ठ, दु:खी की सेवा सदाचार अपनाओ ये यहोबा ने कहा है।

यहूदी धर्म द्वारा बताई सात बुराइयां

1. घमंड से चढ़ी आंखें।

2. झूठ बोलने वाली जीभ।

3. निर्दोष का खून बहाने वाले हाथ।

4. अनर्थ कल्पना करने वाला मन।

5. बुराई की ओर बढऩे वाले पैर।

6. भाईयों के बीच फूट डालने वाले मानव।

7. झूठ बोलने वाला गवाह।

मूसा के उपदेशों में दो बातें मुख्य हैं : एक-अन्य देवी देवताओं की पूजा को छोड़कर एक निराकार ईश्वर की उपासना और दूसरी सदाचार के दस नियमों का पालन।

  • तौरात के अध्याय व्यवस्था विवरण 18 :18-19 में आया है कि "हे मूसा! मैं बनी इस्राईल के लिए उनके भाईयों ही में से तेरे समान एक नबी बनाऊँगा और अपने वचन (आदेश) को उसके मुँह में रख दूँगा। और वह उन से वही बात कहेगा जिसका मैं उसे आदेश दूँगा। जो आदमी उस नबी की बात नहीं मानेगा जो मेरे नाम पर बोलेगा तो मैं उस से और उसके क़बीले से इंतिक़ाम लूँगा।" ये शब्द आज तक उन की किताबों में मौजूद हैं, और उनके कथन "उनके भाईयों में से" यदि इस से अभिप्राय यह होता कि उन्हीं में से अर्थात् बनी इस्राईल में से होता तो वह इस प्रकार कहते कि: मैं उन्हीं में से उन के लिए एक नबी खड़ा करूँगा, जबकि उनके भाईयों में से कहा हैं जिसका मतलब है कि इसमाईल के बेटों में से। 
  • यह कथन पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अलावा किसी और पर लागू नहीं होता है

Thursday 5 May 2016

शबे-ए-मेराज की नमाज़

Shab e Meraj ki Namaz
Shab e Meraj ki kuch namaze ::::
1.Maahe Rajab ki 27vi shab ko 12
rakat namaz 3 salaam se padhe pehle
4 rakat me baad Surah Fateha ke
Surah Qadr 3 martaba har rakat me
padhe,
baad salaam ke 70 martaba baith kar
LA ILAHA IL’LALLAHUL MALIKUL
HAKKUL MUBIN padhe.
Dushri 4 rakat me baad Surah Fateha
ke Surah Nasr 3 martaba har rakaat
me padhe,
baad salaam ke baith kar 70 martaba
LA ILAHA IL’LALLAHUL MALIKUL
HAKKUL MUBIN padhe.
Tisri 4 rakat me baad Surah Fateha ke
Surah Ikhlaas 3 martaba har rakat me
padhe,
baad salaam baithkar 70 martaba
Surah Alam Nasrah padhe.
Phir Baargaah e Rabbul Izzat me dua
maange IN SHA ALLAH TA’ALA jo
hajaat hogi wo ALLAH PAK qabool
farmayega.
2. Maahe Rajab ki 27vi shab ko 20
rakat namaz 10 salaam se padhe har
rakaat me Surah Fateha ke baad
Surah Ikhlaas 1 dafa padhe.
IN SHA ALLAH TA’ALA jo koi ye namaz
padhe to ALLAH TA’ALA uske jaano
maal ki hifazat farmayega.
3. 27vi shab ko 4 rakat namaz 2
salaam se padhe har rakat me Surah
Fateha ke baad Surah Ikhlaas 27
martaba padhe,
baad salaam ke 70 martaba darood
paak padhe aur apne gunaho ki
magfirat talab kare
IN SHAA ALLAH TA’ALA parwar digaar
e aalam apne rehmat e kaamila se
uske gunah muaf farma kar uski
magfirat farmayega.
4.Maahe Rajab ki 27vi tarikh baad
namaz e zohar 4 rakat namaz ek
salaam se padhe.
Pehli rakat me baad Surah e Fateha
ke Surah Qadr 3 martaba,
Dusri me Baad Surah Fateha ke Surah
Ikhlaas 3 dafa,
Tisri me Baad Surah Fateha ke Surah
Falak 3 martaba,
aur chouthi me Baad Surah Fateha ke
Surah Naas 3 martaba pade.
Baad salaam ke darood paak 100
martaba aur Istegfar 100 martaba
padhe.
Ye namaz har murad ke liye IN SHAA
ALLAH TA’ALA bahot afzal hai.
(Book name as a refrence:
Baarah Mahino ki nafl Namaze
(Aukaatu salaat) ,Page No.17)

Shabe-E-Barat

Shab-e-Barat
Mid-Sha'ban two words, and the procession is made up of Shab, meaning night of Shab is where the procession would mean acquittal. According to the Islamic calendar month of the night once a year on the 14th of Sha`ban begins after sunset. For Muslims it is extremely virtue night (glory) is the night, the day all the Muslims of the world are worshiping Allah. They are praying and repent of your sins.
description
This week Arabia Lylatul Barah or Lylatun Nisfe SHABAN is known. Mid-Sha'ban called it India, Pakistan, Bangladesh, Iran, Afghanistan and Nepal are known.

References

शबे-ऐ-मेराज क्या है?

मेराज की रात अल्लाह तआला ने अपने महबूब नबी (स०अ०व्०) को आलमे दुनिया, आलमे बरजख, आलमे आखिरत और आलमे मलकूत की सैर कराते हुए अपनी बारगाह में बुलाया और इतना करीब किया और राज व नियाज की ऐसी बाते की कि तमाम अव्वलीन व आखिरीन फरिश्ते व जिन्न बल्कि अम्बिया व रसूल सब रश्क करते रह गए और तजल्लियाते इलाही की ऐसी दीद हुई कि उससे पहले किसी को हुई थी न इसके बाद किसी को होगी।

तमाम मखलूकात में यह एजाज सिर्फ आप (स०अ०व०) को हासिल हुआ है। एजाज के हर मौके पर रसूल (स०अ०व०) ने अपनी प्यारी उम्मत को याद रखा, राज व नियाज की बातों के बीच उम्मत का भी तजकिरा आया होगा। आप (स०अ०व०) ने तजल्लियाते इलाही का दीदार किया। अल्लाह तआला ने अपने महबूब को दरबारे तजल्ली में बुलाया ही था नवाजिश के लिए, बुलाकर हर ख्वाहिश पूरी की, उम्मत के लिए भी मेराज का तोहफा पेश किया।

यानी नमाज से नवाजा और फरमाया कि यही आप(स०अ०व०) की उम्मत की मेराज है। अव्वलन पचास वक्त की नमाजे फर्ज थीं फिर बाद में पांच नमाजे रह गईं। यह महज फजल खुदावंदी है कि हम नमाज पंजगाना की अदाएगी पर पचास वक्त की नमाजों का सबाब पाते हैं।

इस्लाम में नमाज की अहमियत और वकअत के लिए इतना ही काफी है कि वह इस्लाम के पांच सुतूनों में से एक अहम सुतून है। नबी करीम (स०अ०व०) ने फरमाया- कयामत में सबसे पहले नमाज के बारे में पूछा जाएगा। इरशादे नबवी है- यानी कयामत के दिन बंदे से उनके आमाल में सबसे पहले जिस चीज का हिसाब लिया जाएगा वह नमाज होगी।

यह अल्लाह और उसके नेक बंदे के बीच कुर्बत का सबसे बेहतरीन जरिया है। नबी करीम (स०अ०व०) ने फरमाया नमाजी जब नमाज पढ़ता है तो अपने रब से सरगोशी करता है, नमाज मोमिन की मेराज है आंखों की ठंडक, दिल की रौशनी, दिमाग की आसूदगी व राहत नमाज से हासिल होती है।

नमाज एत्तेहाद व इत्तेफाक और इताअत व फरमाबरदारी का अमली नमूना है। अरबी व अजमी, अमीर व गरीब, गुलाम व आका, शाह व भिखारी, ओहदेदार व बेओहदेदार, हाकिम व महकूम सब एक ही सफ मे खड़े हो जाते हैं, न कोई बंदा है और न कोई बंदा नवाज। नमाज हर बालिग पर लाजिम है।

इससे किसी को छुटकारा नहीं। सेहतमंद हो या बीमार, आलिम हो या जाहिल, शाह हो या भिखारी, साहबे दौलत हो या मुफलिस, हिन्दी हो सिंधी, अरबी हो या अजमी, मशरिकी हो या मगरिबी हर मुसलमान पर नमाज पंजगाना फर्ज है। सुकून व इत्मीनान की हालत में हो या जंग व जिदाल का खौफनाक और हौलनाक मंजर जिसमें तीरों की बारिश हो रही हो नेजो और तलवारों की बिजलियां चमक रही हों, लेकिन नमाज की सफ यहां भी कायम।

पांचो नमाजों को अपने अपने वक्तों में अदा करने से हर काम वक्त मुकर्ररा पर अंजाम देने की आदत हो जाती है और यह दोनों जहां में कामयाबी की निशानी है। पांचों नमाजों में जुमा और ईदैन में लोगों का इज्तिमा होता है जिसकी वजह से आपसी मोहब्बत व ताल्लुक एक दूसरे के हालात से वाकफियत और तमाम इज्तिमाई काम की अंजामदेही में आसानी हो जाती है।

अमीर व फकीर एक जगह जमा होते हैं और अमीरों में गरीबों, मोहताजों, यतीमों और बेवाओं पर तरस खाने और उनकी मदद करने का जज्बा पैदा होता है। नमाज हर वक्त अल्लाह की याद, आखिरत की फिक्र व तैयारी, हक पर कायम रहने, बातिल को मिटाने का फितरी जज्बा मोमिन में पैदा करती है।

यह गुनाहों और नाफरमानियों से बाज रखती है। अल्लाह तआला ने परेशानी की घड़ी में सब्र और नमाज के जरिए मदद चाहने की तलकीन की है।

बेशक नमाज के अन्दर यह बरकात व फैजानात मौजूद है। आज भी अगर कोई पूरे खुशूअ व खुजूअ के साथ नमाज की पाबंदी करे तो उसे इसी दुनिया में मेराज और तजल्लियाते इलाही नसीब हो जाए और अगर पूरी उम्मत को नमाज कायम करने की तौफीक मिल जाए तो उम्मत के अन्दर मौजूद तमाम रजायल दूर हो जाएं और उसको अपनी खोई हुई अजमत मिल जाए।

मेराज मुसलमानों के लिए एक अजीम इनाम भी है। मगर आज हम शबे मेराज में क्या करते हैं? अगर उनकी तफसीलात बयान की जाए तो सिवाए अफसोस के और कुछ नहीं होगा। हम शबे मेराज को सैर व तफरीह की रात समझते हैं। इसे कव्वाली, गजल और गपशप तक महदूद किए हुए हैं।

इतनी अहम व अजीम रात को हम यूं ही गुजार देते हैं। हमने बहुत से ऐसे लोगों को भी देखा है जिनका पूरा घर पांच वक्त की नमाज तो नहीं पढ़ता मगर शबे मेराज में सब नहा धोकर साफ कपड़े पहन कर रात भर तसबीह व नवाफिल पढ़ते रहते हैं। मुमकिन है वह इस रात की अहमियत को न समझते हों मगर उलेमा और दानिश्वराने कौम इस रात की अहमियत और तकाजे क्यों नहीं बताते? दरअसल शबे मेराज को हमने एक त्योहार समझ रखा है।

हम नबी करीम (स०अ०व०) के तरीके को नहीं समझते। सहाबा और बुर्जुगाने दीन के अमल को नहीं अपनाते। इस रिवायती अंदाज में इतनी अहम रात को त्योहार की तरह गुजार देते हैं यह मुसलमानों का तरीका नहीं। पांच वक्त की नमाज का अजीम तोहफा शबे मेराज में अल्लाह तआला ने अपने महबूब हजरत मोहम्मद (स०अ०व०) को दिया। क्या हम उस तोहफे को समझ सके। नमाज मोमिन की मेराज है, नमाज दीन का सुतून है क्या यह सब हुजूर का फरमान नहीं? फिर हम इसे क्यों नहीं मानते उस पर अमल क्यों नहीं करते।

तमाम मसायल का हल नमाज है, तमाम तरह की परेशानियों का इलाज नमाज है जिस घर के लोग नमाजी हैं उस घर में अल्लाह की रहमत व बरकत नाजिल होती है, आने वाली बलाएं टल जाती हैं, ईमान सलामत रहता है। हम नमाज नहीं पढ़ते हैं तो शबे मेराज मनाने का हक नहीं है। कितने अफसोस की बात है कि नमाज छोड़कर हम खुद दीन की बुनियादों को खोखला कर रहे हैं।

अल्लाह ने कुरआन में बार-बार नमाज कायम करने का हुक्म दिया है फिर भी हम नहीं पढ़ते। गोया अल्लाह और कुरआन के एहकाम को झुटलाते हैं फिर हम कैसे मुसलमान है? हम अगर वाकई मुसलमान बन जाएं, अल्लाह व उसके रसूल के एहकामात पर सख्ती से अमल करें तो हमारी जिंदगी में एक नया इंकलाब आएगा।

मगर अफसोस कि शैतान हमारे दिल व दिमाग पर इस तरह हावी है कि हम सब कुछ समझकर भी महसूस नहीं करते। हमारा एहसास मर चुका है, दिल सयाह ( काला) हो चुका है तो अच्छी बातें कहां से हमारे दिल व दिमाग में आएंगी। नवाफिल पढ़ रहे हैं तस्वीह पढ़ रहे हैं क्या यह अमल काबिले कुबूल होगा। अल्लाह का उसूल और उसका कानून बरहक है।

उसकी खिलाफवर्जी करके दिन रात अल्लाह-अल्लाह करते रहे कुछ नहीं होता जो तरीका बता दिया गया जिस तरीके पर चलकर नबी करीम (स०अ०व०) ने दिखा दिया है जब तक उसकी तकलीद नहीं करेंगे सब बेकार है। मुसलमानों को शोबाजी और दिखावे की दुनिया से अलग होकर अमल की दुनिया में आने की जरूरत है।

तभी दुनिया हमारे कदमों में होगी वरना हम दुनिया के कदमों में रहेंगे। जरूरत इस बात की है कि शबे मेराज के फलसफे को समझा जाए और फिर नमाज को अव्वलियत देकर पाबंदी की जाए। आज मुसलमान अपने मसायल के लिए दर-दर भटक रहा है कोई मोहताजगी की हालत में है कोई परेशानी की हालत में है।

किसी के घर बीमारी है किसी के घर आपसी झगड़ा है। इन तमाम मसायल का हल नमाज में है। मस्जिद जो अल्लाह का घर है वहां हम नहीं जाते गली मोहल्लों में घंटों एक दूसरे के साथ गपशप और दुनियावी बातों में मसरूफ रहेंगे मगर दस पन्द्रह मिनट का वक्त हमारे पास नमाज पढ़ने का नहीं है। अगर हम नमाज से गफलत करते रहे तो हमारा वजूद व शिनाख्त तक कुचल दी जाएगी।
शबे मेराज का तकाजा नमाज है।