Friday 4 March 2016

जुमा की नमाज़/jumaa ki namaz

जुमा की नमाज हर आजाद और तन्दुरुस्त मुसलमान पर
फर्ज है ।मरीज गुलाम मुसाफिर, औरत ,लड़के (वे लड़के
जो ना-बालिक है ) बीमार इस से अलग है । ईमाम और
ईमाम के अलावा अगर दो आदमी और
हो तो जुमा की नमाज के लीये शहर या बड़े कस्बे
का होना शर्त है । मामूली गाँव हो तो उस में
जुमा की नमाज फर्ज नही है । वहाँ के लोगों को जूहर
की नमाज अदा करनी चाहिये । जुमा के दिन नहा कर ,
पाक व साफ कपड़े पहने और जितना सवेरे हो सके मस्जिद
में जाकर कलाम पाक की तीलावत करे और खुदा से दुआ
माँगे । अगर किसी वजह से देर हो जाए
तो जुमा की अजान पहले जरूर पहुँच जाए । अगर जवाल
का वक्त न हो तो पहले दो रकात नमाज पढ़ ले , फिर बैठे ।
दो रकाअत नमाज मस्जिद मे दाखिल होने का तोहफा है ,
फिर चार रकअत सुन्नत जुमा की नमाज से पहले पढ़े । इस
के बाद जब ईमाम खुत्बा पढ़ने के लीये मिम्बर पर बैठे
या ईमाम खुत्बा पड़ता हो , उस वक्त किसी किस्म
की बात न करे और न नमाज पढ़े , बल्कि खामोश रहे और
गौर से खुत्बा सुने , चाहे समझे या ना समझे , सर खोल कर
या टेक लगा कर ना बैठे । जुमा की नमाज शरई उजर के
बगैर छोड़ना बहुत बड़ा गुना है अगर किसी वजह से नमाज
ना मिले तो उस को जुह अदा कर लेनी चाहिये....

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